जांजगीर चाम्पा

हमारे देव प्रतिमाओं का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो भक्ति, श्रद्धा और दिव्यता को दर्शाए, बाल स्वरूप या कार्टून कृति, धार्मिक गरिमा को क्षति पहुँचा रही है : स्वामी सुरेन्द्र नाथ

img 20250915 wa05285500969472473009622 Console Corptech

जांजगीर-चांपा // हिंदू धर्म में प्रतिमा का अर्थ केवल मूर्ति नहीं, बल्कि उस निराकार ब्रह्म को पाने का सहज मार्ग है, जो आस्था और भाव से जुड़ा होता है। जब लोग पूजा करते हैं, तो उनके मन में भगवान का दिव्य स्वरूप होता है। यदि प्रतिमा कार्टून या मजाकिया अंदाज में बने, तो लोगों की श्रद्धा आहत हो सकती है।कभी आचार्य चाणक्य ने कहा था कि- मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा” सत्य ही कहा था, हिन्दूओं के अलावा भारत का कोई भी धर्मावलंबी सेक्युलर बनने की मूर्खता नहीं करता, न ही अपने धार्मिक मान्यताओं से छेड़छाड़ बर्दाश्त करता है, लेकिन हिंदुओं को सहिष्णु और प्रगतिशील बनने की चाह इतनी है कि हम किसी गलत का भी विरोध नहीं करते, और मूर्तिकार, गीतकार आज कल क्रिएटिविटी के नाम पर पारम्परिक सीमाओं को भी लांघ जाते हैं, जिसे आम प्रज्ञावान व्यक्ति समझ नहीं पाता, कि इसीप्रकार एक छोटे छोटे बदलाव एक दिन परम्परा के स्वरूप को ही बदल देंगे। शास्त्रों में भी कहा गया है कि पूजा हेतु वही रूप स्वीकार्य है, जिसमें भक्त के भीतर श्रद्धा और भक्ति का भाव जागे। पंडाल सामूहिक आस्था का केंद्र होते हैं। वहाँ कलात्मकता का स्वागत है, लेकिन उसमें मर्यादा और गरिमा बनी रहनी चाहिए। कार्टून या AI जैसी आधुनिक शैलियाँ अगर केवल कला प्रदर्शन के लिए हों और उसमें भगवान का अपमान दिखे, तो निश्चित ही धार्मिक गरिमा पर चोट पहुँचती है।अगर नई तकनीक का प्रयोग शास्त्रीय और भव्य स्वरूप को उभारने के लिए किया जाए, तो यह स्वीकार्य और सराहनीय भी हो सकता है,लेकिन श्रीगणेश की मूर्ति को रचनात्मक बनाने के नाम पर कहीं टोपी पहनाया गया, कहीं डॉक्टर बनाया गया, किसी ने अम्बेडकर का रूप दे दिया, क्या अन्य किसी धार्मिक प्रतिक के साथ भी ऐसी रचनात्मकता दिखाने की हिम्मत है किसी की…? नहीं क्योंकि तत्काल तन सिर से जुदा होने लगेंगे। फिर हिन्दू धर्म के साथ खिलवाड़ क्यों हो रहा है, और सबसे बड़ी विडंबना ये है कि इतने बड़े बहुसंख्यक जनता के साथ ये मसखरी हो रही है, लेकिन मुखर हो कर कोई विरोध नहीं कर रहा, उल्टा लोग इंजॉय कर रहे हैं। यही उदासीनता पतन का कारण बनेगी, फिर लोग माथा पीटते हैं, हमारे साथ ही गलत क्यों होता है..? अभी जो हो रहा है, और आगे भी जो होगा उसका कारण स्वयं हिन्दू समूह है, दूसरा कोई नहीं।  देव प्रतिमाएँ भारतीय परंपरा में आध्यात्मिक शक्ति के केंद्र मानी जाती हैं। वे केवल मूर्ति नहीं, बल्कि आराधना का माध्यम होती हैं। धर्म और देवता केवल निजी विषय नहीं, सामूहिक आस्था से जुड़े होते हैं। कोई भी ऐसा रूप जो मजाकिया, हल्का या कार्टूननुमा बनाया गया हो, बहुसंख्यक समुदाय के श्रद्धालुओं और उनकी आस्था पर अपमानजनक प्रहार किया जा रहा है। इसे समझना होगा।मूर्ति और पंडाल बनाने वाले कलाकार और आयोजकों को थोड़ा विचार कर कार्य करना चाहिए, क्योंकि ये मनोरंजन के साधन नहीं आस्था और विश्वास का स्थल होता है, समाज की भावनाओं का पूरा सम्मान करना चाहिए।देव प्रतिमाओं का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो भक्ति, श्रद्धा और दिव्यता को दर्शाए। कला और तकनीक का प्रयोग स्वागत योग्य है, बशर्ते वह धार्मिक गरिमा को बढ़ाए, घटाए नहीं और समाज में भी यह समझ फैलानी चाहिए कि धर्म का मज़ाक करना कला या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था को चोट पहुँचाना है। स्कूल, कॉलेज, मंदिर समितियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से इस विषय पर चर्चा की जानी चाहिए। बड़े धार्मिक संगठन और संत समाज स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करें कि पूजा-पंडालों, आयोजनों और सोशल मीडिया पर देव प्रतिमाओं का पारम्परिक स्वरूप ही मान्य है।आयोजकों को कोड ऑफ कंडक्ट (आचार संहिता) दिया जाना चाहिए।भारत में पहले से ही IPC की कई धाराएँ (जैसे 295, 295A) हैं, जो धार्मिक भावनाएँ आहत करने पर दंड का प्रावधान करती हैं।
“यदि कोई जानबूझकर देवताओं की छवि का अपमान करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी  चाहिए”

डिजिटल युग में कार्टून, AI इमेज और मीम्स तेजी से फैलते हैं, जहाँ सीधे कानूनी कार्यवाही सम्भव नहीं, इसलिए धार्मिक संगठनों और आम नागरिकों को Report और Awareness Campaign चलाना चाहिए।सामाजिक संवाद के माध्यम से सकारात्मक विकल्प देकर कलाकारों और आयोजकों को यह बताया जाए कि आधुनिक कला का प्रयोग कैसे गरिमा बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।

“जैसे एआई से भव्य डिजिटल प्रतिमाएँ बनाना (ना कि कार्टूननुमा स्वरूप बना कर उपहास करना”

पौराणिक कथाओं पर 3D लाइट-शो करना, शास्त्रीय संगीत व नृत्य का प्रयोग करना आदि।यदि कहीं अपमानजनक प्रतिमा या प्रदर्शन होता है, तो लोग शांतिपूर्ण ढंग से विरोध दर्ज करें। हिंसा या तोड़फोड़ से बचें, क्योंकि इससे मूल संदेश दब जाता है और गलत लोग इसे “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का मुद्दा बना देते हैं धार्मिक गरिमा की रक्षा का सबसे प्रभावी तरीका है —जन-जागरूकता, संतुलित कला-प्रयोग, कानूनी सुरक्षा और सामाजिक सजगता। यदि समाज खुद संवेदनशील होगा, तो ऐसे कार्य स्वतः रुकने लगेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button