पुरातत्व सर्वेक्षण में आये उड़ीसा के अध्ययन दल खरौद पहुँचे – डॉ. जी. सी. भारद्वाज
जांजगीर-चांपा – प्राचार्य शासकीय लक्ष्मणेश्वर स्नातकोत्तर महाविद्यालय खरौद छत्तीसगढ़ डॉ. त्रिलोचन प्रधान संबलपुर विश्वविधालय उड़ीसा के अत्ताबीरा महाविधालय बरगढ़ के नेतृत्व में एक अध्ययन दल पुरातत्व सर्वेक्षण एवं खोज में छत्तीसगढ़ कांशी खरौद पहुँचे। उनका शोध विषय है “ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अनुसंधान के अंतर्गत- उड़ीसा एवं छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का अध्ययन” इस कार्य हेतु उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर और छत्तीसगढ़ स्थित शिवरीनारायण के नर नारायण मंदिर के अंतरसंबंधों एवं उनके इतिहास के पीछे के रहस्यों को जानना और अध्ययन करना है क्योंकि माघ पूर्णिमा को शिवरीनारायण में मेले की शुरुवात सहित मेले में पूजा अर्चना करने की बात कही जाती है। इस दौरान साल में एक बार माघ पूर्णिमा को जगन्नाथ मंदिर का दरवाजा एक दिन के लिए बन्द रहता है। ऐसा कहा जाता है कि,इस दिन भगवान जगन्नाथ एक दिन के लिए शिवरीनारायण में आ विराजते हैं साथ ही साथ 1181 ई. चेदि संवत् 917 के लक्ष्मणेश्वर मंदिर के पीछे की रहस्यों एवं इतिहास का पता लगाना भी है,जिसमें उसके शिलालेख में कलिंग राज से रत्नदेव तक हैहयवंशी राजाओं के पूर्ण वंशावली और विरासत को जानना और समझना है इसी क्रम में सिरपुर की ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन भी करना शामिल है इस दौरान डॉ. तृलोचन प्रधान और वरिष्ठ पत्रकार एवं संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार होता द्वारा महाविधालय के प्राचार्य डॉ. जी. सी. भारद्वाज से भेट वार्ता और खरौद तथा शिवरीनारायण के ऐतिहासिक पहलुओं पर गंभीर चर्चा शामिल है। इस दौरान डॉ. भारद्वाज ने खरौद पर अपने अध्ययन की महत्वपूर्ण बातें भी बतलाई फिर उनके द्वारा महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. ए. आर. बंजारे और नगर के वरिष्ठ पत्रकार सुबोध शुक्ला से भी भेट वार्ता की। इस दौरान ऐतिहासिक और आधुनिक दो प्रकार की विचार धारा सामने आयी,जिसमें आधुनिक विचारधारा एवं मानवशास्त्रियों द्वारा पुरी में बौद्ध स्तूप होने की बात कही जाती है संभवतः पुरातत्व वेत्ता जी. डी. बेगलर की 1874 के बाद छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का द्वितीय अध्ययन होगा। जिसमें उसकी अस्मिता एवं विरासत शामिल है जो कतिपय कारणों से शोध कर्ताओं के अध्ययन का विषय नहीं बन सका उनके इस अध्ययन दल में डॉ. तृलोचन प्रधान बरगढ़, वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र होता, श्री संजय मेहर निर्देशक राज्य हैंडलूम और श्री ललिता मोहन मेहर प्रोग्राम आफिसर शामिल रहा। इस अध्ययन में कई बातों में समानताएँ एवं विभिन्नताओं पर चिंतन एवं शोध का विषय है। जो समाजशास्त्र,इतिहास और मानव शास्त्र के लिए शोध का विषय है।