स्त्री का चरित्र ही उसका सबसे बड़ा रक्षक है- रत्नेश प्रपन्नाचार्य
सिर पर सीताराम फिकर फिर क्या करना ? तेरे बनेंगे बिगड़े काम फिकर फिर क्या करना?
रायपुर – जीवन में कभी-कभी निराशा मिलती है यह क्षण सबके जीवन में आता है लेकिन जो भगवान का आश्रय लेते हैं वह निराशा को दूर कर जाते हैं। जब आपको लगे कि जीवन में सब कुछ खत्म हो गया! तब आंख बंद करके ईश्वर का ध्यान कर लेना कोई ना कोई मार्ग मिल जाएगा।* यह बातें व्यास पीठ की आसंदी से अवधपुरी धाम, उत्तर प्रदेश से पधारे हुए अनंत श्री विभूषित श्री स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने संगीतमय श्रीराम कथा के अंतिम दिवस राम कथा के रसिकों को श्रीमद् वाल्मीकि रामायण की कथा का रसपान कराते हुए अभिव्यक्त किया। उन्होंने कहा कि *स्त्री के जीवन का सबसे बड़ा आभूषण है, पति का प्रेम। जिस स्त्री से उसका पति प्रेम करता है वही संसार की सबसे सुंदर स्त्री है। चरित्र ही उसका सबसे बड़ा रक्षक है। जो स्त्री चरित्रशील है वह राक्षसों के बीच लंका में भी सुरक्षित है और जो चरित्रहीन है वह अपनों के बीच ही असुरक्षित है* 84 लाख योनि में भटकने के पश्चात जीव को मानव का शरीर प्राप्त होता है, मानव शरीर प्राप्त करने का एकमात्र उद्देश्य है ईश्वर को प्राप्त कर लेना, नहीं तो मानव जीवन प्राप्त करना व्यर्थ हो जाएगा। *जीव के जीवन में जब तक भय बना होता है तब तक वह भगवान की ओर दौड़ता है निर्भय होते ही सबसे पहले वह भगवान को ही भूल जाता है*। संसार का सबसे कमजोर व्यक्ति वह है जो ईश्वर पर विश्वास नहीं करता। जब हम किसी संत पर विश्वास नहीं करते तब जीवन से भक्ति दूर चली जाती है, जो असली संत होते हैं उनके जीवन में आडंबर नहीं होता। चमत्कार किसी संत की कसौटी नहीं है। जीवन का सबसे बड़ा चमत्कार ईश्वर को प्राप्त करना ही है। जीवन में खोई हुई शान्ति ,भक्ति और शक्ति को प्राप्त करने के लिए विचार, विश्वास और वैराग्य रूपी पर्वत पर चढ़ना सीखना चाहिए। संसार में गिरे हुए लोगों को केवल दो लोग ही उठाते हैं एक संत दूसरा भगवंत। मानव जीवन में तीन ही कार्य हैं- कामकाज, आम काज तथा रामकाज। ध्यान रहे हम संसार में रहें, संसार हममें ना रहे। *नाव पानी में रहता है लेकिन पानी नाव में नहीं रहता यदि नाव के अंदर पानी आ जाए तब वह डूब जाएगा।* उन्होंने कहा कि यदि कोई प्रशंसा करें तो छोटे बन जाओ नहीं तो प्रशंसा बड़े-बड़े को निगल जाती है। प्रणाम जीवन के हर परिणाम को बदल देता है। बच्चों में बालपन से ही संस्कार डालनी चाहिए। घड़ा पक जाने के बाद गढ़ा नहीं जा सकता। उन्होंने *सिर पर सीताराम, फिकर फिर क्या करना। तेरे बनेंगे बिगड़े काम, फिकर फिर क्या करना*।। गाकर लोगों को खूब रिझाया और रावण वध से लेकर भगवान श्री सीताराम जी के राज्याभिषेक तक की कथा लोगों को सुनाया *समाप्ति के अवसर पर* अंत में उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन में संत और श्रोता बहुत देखे लेकिन पूज्य राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी के जैसा संत और श्रोता कहीं नहीं देखा। उन्होंने सभी श्रोताओं का भी आभार जताया। राजेश्री महन्त जी महाराज ने लोगों के समक्ष कहा कि- पूज्य गुरुदेव जी महाराज को इस संसार से गए हुए 30 वर्ष पूरे हो गए उनकी स्मृति में यह कथा प्रतिवर्ष आयोजित होती है आप सब पुण्य के भागी बने हैं इसके लिए आप सभी को धन्यवाद ज्ञापित करता हूं। मठ मंदिर के ट्रस्टी विजय पाली ने सभी के प्रति आभार जताया। कार्यक्रम में संत श्री राम गोपाल दास जी महाराज, राधेश्याम दास जी महाराज, गोवर्धनाचार्य जी महाराज एवं पूर्व शिक्षा मंत्री श्री सत्यनारायण शर्मा, पूर्व कमिश्नर बी एल तिवारी, सहित अनेक गणमान्य नागरिक गण सम्मिलित हुए।