हिन्दी की अस्मिता और ब्यथा, साहित्य के आईने में
डॉ. जी. सी. भारद्वाज शासकीय लक्ष्मणेश्वर स्नातकोत्तर महाविद्यालय खरौद, जिला जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़ ( 14 सितम्बर, हिंदी दिवस स्पेशल )
जांजगीर-चांपा – सभी भारतवासियों को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । आप सभी को विदित है , कि 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान के अनुछेद 343 के तहत हिंदी देवनागरी लिपि में अधिकारिक तौर पर जनसामान्य की भाषा होने के कारण राजभाषा स्वीकृत किया गया है । हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और एकता का प्रतिक है। यह हमें हमारे समृद्ध इतिहास, साहित्य और परंपराओं से जोड़ती है। हिंदी दुनिया भर में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती है। जो इसे दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक बनाता है। जो हमें विश्व में एक अलग पहचान दिलाती है। इस ऐतिहासिक दिन को याद रखने के लिए जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने इसे 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष मनाने का निर्णय लिया था । तब से यह प्रतिवर्ष बड़े धूमधाम से मनाया जाता है , हमें इसकी अस्मिता और अक्षुणता को बनाये रखना है । आइये हम इसे कैसे स्थापित करें इस पर चिंतन करें।
,,हिन्दी भाषा की ब्यथा ,,
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी ने देश को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हिंदी भारतीय समाज की सांस्कृतिक विरासत है। यह भाषा न केवल साहित्यिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसने न केवल हमें महान कवि और लेखक दिये हैं, बल्कि यह भाषा हमारी धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं को भी जोड़े हुए हैं। यह न केवल महज एक भाषा है बल्कि रविदास, कबीर, तुलसी रहीम जैसे कवियों की अमूल्य धरोहर भी है। इसकी दृष्टिगत स्कूलों और कालेजों में सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।
आप सभी प्रबुद्धजनों से आग्रह है कि राष्ट्रभाषा की दशा एवं दिशा पर चिंतन करें और इसकी महत्ता बनाये रखने में अपना बहुमूल्य योगदान दें। आज हम भाषायी संकमण की दौर से गुजर रहे हैं । आज डिजिटल युग में इसकी उपयोगिता बढ़ी है तथापि कई चू नौ ति भी है। अंग्रेजी का प्रभाव और हिंदी के प्रयोग में कमी के कारण भाषा की पहचान और अस्मिता खतरे में है । अंग्रेजी की तथा कथित देशी विद्वान भी अपने मातृ भाषा के जानकार रहे हैं । परंतु साहित्य की सृजन में आज निरंतर गंभीरता की कमी और उथलापन के कारण अपनी भाषा के प्रति लोगों का लगाव कम होते जा रहा है , जो चिंतन का विषय है ।अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है उसकी जानकारी हो , परन्तु अंग्रेजियत इतना हावी न हो , कि अपनी पहचान और संस्कार मिट जाय । हिदी दिवस पर मौजूदा स्थिति का अवलोकन कर अपनी बुद्धिजीवी होने का परिचय दें और हिंदी को विश्व स्तर में मान्यता दिलाने में सहयोग करें ।
आइये इसकी ब्यथा पर चिंतन करें –
हिंदी भाषा की ब्यथा ,
दुख भरी इसकी कथा ।
हिंदी भारत माँ की आन ,
और यहीं हमारी शान ।
महक रही जो बगिया मेरी ,
निज सम्मान के रही अधूरी ।
आधिकारिक तौर पर जो स्वीकार ,
वहीं आज दिखती लाचार ।
ऐसी है इसकी ब्यथा ,
दुख भरी इसकी कथा ।
निज भाषा जीवन की आशा ,
निज भाषा बिन जटा निराशा ।
नहीं केवल यह काम चलाऊ ,
और नहीं हिंग्लिश ।
हिंदी भारत माँ की बिंदी ,
इस पर हम सबको अभिमान ।
पर दक्षिण में जाकर देखो ,
पग पग पर होता अपमान ।
ये कैसी है आस्था ,
दुख भरी इसकी गाथा
वाणी का है यह वरदान ,
होता है संस्कृति का भान ।
घुट्टी में मिली जो भाषा ,
मातृभाषा कहलाती ।
रहे विरासत और इतिहास ,
इसमें समाया है संस्कार ।
अंग्रेजीयत से पस्त है ,
राजनीति से ग्रस्त है ।
ऐसी है इसकी ब्यथा ,
दुख भरी इसकी कथा ।
हिंदी उन्नति का आधार ,
निज भाषा बिन सब बेकार ।
लक्ष्य नहीं बस चाकरी ,
वरन विकसीत जीवन ।
स्तरीय भाषा बाधक नहीं साधक ,
पहचान असीमित कार्य क्षेत्र ।
मेहमान मालकिन हुई ,
और मालकिन मोहताज ।
ये कैसी है खता ,
भारत की है दुर्दशा ।
हिंदी दिवस पर ले संकल्प ,
हम करेंगे कायाकल्प ।
सुघड़ गृहणी सम अपनाये ,
खर्च नहीं निवेश कराये
चीज बुनियादी ध्यान कराए ,
आय मुताबिक बजट बनाये ।
हम सबकी हो यह अभिलाषा ,
एक देश और एकहि भाषा ।
सम्मानित हो अपनी भाषा ,
हिंदी हम सबकी हो भाषा ।